साल के अंतिम दिनों की गिनती करती, वो बूढ़ी सी दिसम्बर की एक अलसायी सी सुबह थी। तापमान किसी चुनाव के दौरान नेताओं के मुंह से निकले निम्न से निम्नतम स्तर की आरोप-प्रत्यारोप और सनसनीखेज बयानों तरह आज औंधे मुह गिर चुका था। थर्मामीटर का पारा, आज फिर चुनाव के पूर्व विपक्षी गठबन्धन की एकता की भांति एकजुट होकर अपनी शक्ति प्रदर्शन कर रही थीं। आसमान ने काले कलूटे अंधेरे वाली रजाई का त्याग कर मखमली सफ़ेद कोहरे की चादर ओढ़ ली थी। ठंड में ठिठुरते हरे-हरे पत्तों से ओस की बूंदें रह-रह कर टपक रही थी। खिड़की के बाहर कौओं का एक जोड़ा, आज कुछ ऊँची आवाज में ही काउं-काउं करते हुए कलरव राग गुनगुना रहे थे। सूर्य देवता तक अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए कोहरे संग जदोजहद कर रहे थे, जिससे उनका रंग गुस्से में लाल लाल हो चुके थे।
इस पूस की सर्द भोर में, आज शायद मुर्गा ने भी बांग देना भूलकर अपनी मुर्गी के आगोश में सो जाना बेहतर समझा होगा। मंदिर के लाउडस्पीकर से सुबह-सबेरे गुलशन कुमार जी ने अबतक न ही हनुमान चालीसा और आरती का गायन था, व न ही अनुराधा पौड़वाल जी ने अमृतवाणी का पाठ अबतक प्रारंभ किया था।
आखिरकार मुझे निदिया रानी की छत्रछाया में, सपनों के आगोश से बाहर निकलने की जिम्मेवारी मेरे MI स्मार्टफोन ने उठाई। अपने कुम्भकर्ण टाइप के मालिक को जगाने के लिए इस मासूम से मोबाईल रूपी यंत्र राग अलाप आरंभ किया, और यह अबतक कई बार आलाप भी चुका था। हाथों का यह आभूषण, इस ठंड में कई बार मेरे कोप का भाजक बनते हुए उंगलियों की चोट खाकर अपनी मुँह बंद कर ली। मगर ये जिद्दी चायनीज शैतान मेरे से कुछ कम है क्या ?
किन्तु, परन्तु, but बंधू…. आज यह मेरे कमरे में दस्तक देकर मेरे आदेशानुसार, पूर्वनिर्धारित समय में मेरी मन-मर्जियों संग छेड़छाड़ करने की ठान रखी थी । सच कहूं तो मुझे आज यह यंत्र, गले पर अटकी किसी नाक टाइप वाला अभिशाप सा प्रतीत हो रहा था |
वो बजने की जिद्द पर अड़ा था, और मैं इगनोर करने की। हरेक 5 मिनट में वो अपनी फ़ौज में शामिल vibrations, sound और प्रकाशित स्क्रीन के साथ लेकर हंगामा खड़ा करता, और मैं उसके आंदोलन को अपने अंगूठे से कुचलकर दुबारा रजाई रानी के बाहों में सिमट सा जाता ।
इसी जद्दोजहद के मध्य अचानक दीवाल घड़ी पर नजर दौड़ाने पर मैंने महसूस किया कि दीवाल में टंगी घड़ी माता की सबसे छोटकी बहुरिया अपने 7 वे आशिक़ को गले लगाने वाली हैं। अब मैं मूकदर्शक बनकर कबतक खामोश रजाई के अंदर दुबकर रह सकता था। So, अंततः अरविंद केजरीवाल जैसे शांत-शुशील अपने क्रांतिकारी मन को हार्दिक पटेल बनाकर बिस्तर से बाहर पहला कदम रखा। उफ्फ हाय रे ये बेदर्द ठंड, मार ही डाला रे बाप।
परंतु सर पर गुजरात चुनाव के समान जिम्मेवारियों की पहाड़ थीं, जिमसें मैं ठहरा वो हार्दिकवा टाइप का लौंडा, असफलता तो भाईवा तय थीं, पर बाबा ई क्या है न कि आप बिना तनिक डांनस-वानस का प्रैक्टिस-वरेक्टिस किये, आंगन को ठेड़ा-मैरह कैसे कह सकते हैं… EVM पर दोषारोपण कैसे कर सकते हैं ? सो फाइनली, आप समझ ही रहे हैं…।
इस ठंड में और कितना लिखवाओगे भाई😂😁😀🤣
और क्या….कभी टाइम निकाल कर आओ हवेली में, अदरक वाली चाय पिलाते हैं तुमको☕।
© Pawan Belala 2017
Loved the way u framed ur words 👍🏻👍🏻👍🏻
LikeLiked by 1 person
बहुत बहुत धन्यवाद् रोहित जी
LikeLiked by 1 person
Beautifully worded ✌✌
LikeLiked by 1 person
Thanks Jyo🙏
LikeLike
Badi sundrta se likha hai aapne👌👍
LikeLiked by 1 person
Anekanek sukriya
LikeLiked by 1 person
Apke likhne ka andaaj nirala hai……lajwaab.
LikeLiked by 1 person
आकाश भर प्रणाम व धन्यवाद् …..! आपके शब्दों से काफी उर्जावान महसुस करता हूँ :
LikeLike
🙏🙏🙏
LikeLiked by 1 person