तुम आओ न !

तपती धरती की तृष्णा मिटा,
पत्तो, लताओं की प्यास बुझा,
सोंधी मिट्टी को गले लगाकर,
ताजे झोंखो संग पास तू आ।

दहाड़, कड़क और चमक धमक संग,

जब नाचती-गाती तू इठलाएगी।

गांव गली के कृषक-मजदुर,

खुशहाली के धुन गुनगुनायेंगे।

सूखे तालाब की भूख मिटेगी,

नदियों के अच्छे दिन आएंगे।

मेरे मन का मोर सब देख,

शहर इश्क का सजायेगाँ।

सूरज शर्म से लौट गया,
चाँद का साया टूट गया।
ख़ुशी के काले बादलों से,
जीवन दौबारा लौट गया।

तन कोमल निर्मल हुआ,

मन पावन कोमल हुआ।

छुआ जब-जब तेरी बूंदों ने,

मन मेरा शीतल हुआ।

पत्तो में तुम छलक रही,
तालाबो में पत्थर फेक रही।
नदी के संग बहते बहते,
आँखों की तृष्णा मिटाओ न !
मन-मस्तिष्क को सरोबार कर जाओ न !
कागज वाली नाँव बहाओ न !
जोर-जोर से गाओं न !
संगीत वाली महफ़िल सजाओ न !
मेढकों को निमंत्रण दे जाओ न !

पिछले साल से तनिक अधिक,

तुम जोर लगाके आओ न !

थर्मामीटर के पारे को,

औकात दिखा के जाओ न !

नदी के संग बहते बहते,

मेरी तृष्णा मिटाओ न !

तुम आओ न !
तुम आओ न !
मुझ आशिक़ को और तड़पाओ न !


© Pawan Belala 2018

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