मंजिल से भी ख़ूबसूरत सफर (अतिथि कविता)

(1). अतिथि देवों भव: आलेख !

लेखिका :  Barsha Snata Panda

ना मिले तुम ना हम बिछड़े,
बस जीवन भर तेरा इंताजर किया.
कुछ तुम ना खुल के बोल सके,
ना हमने हाल-ए-दिल इज़हार किया।

विरह में तपकर खुद ही मैंने,
घुटन का मीठा-खट्टा सा पान किया.
तुझे तो ये भी ज्ञान नहीं,
तुझपर मैंने अपना ये नाम किया…
समय-काल के खिलौने-खेल में,
कुदरत से करिश्मा मांग रही,
विरह वेदना का आलम हैं ये,
भविष्य-पथ का कोई ज्ञान नहीं.
ह्रदय टिस में रमकर इतना ही कहूँगी,
आज दिल पे मेरा जोर नहीं,
परन्तु इश्क़ मेरा मजबूर नहीं हैं,
फिर भी
जब-जब तेरी याद आती है,
चहरे पे मुस्कान छाती हैं,
खुद से अक़सर ये पूछ लेती हूँ,
तुझे पाने से मंजिल मिल जाएगी,
लेकिन तुझे चाहने का ये सफर मंजिल से कम खूबसूरत कहाँ ?

ये सफर ही मेरी मंजिल हैं,
ना मिले तुम ना हम बिछड़े,
बस जीवन भर तेरा इंताजर किया.
कुछ तुम ना खुल के बोल सके,
ना हमने हाल-ए-दिल इज़हार किया।


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