“इंडिया का तोह कुछ भी नही हो सकता” बिल्कुल सही सोचते हैं आप जनाब। मैं आपके हारकर गिरफ़्तार हुए क्रांतिकारी मन के दर्द को लिखने की आज कोशिश कर रहा हूँ, जो शायद मेरे जैसा एकलौता बकवास लेखक ही कर सकता हैं । खुद को भारतीय कह संबोधित करे या फिर इंडियन अथवा हिंदुस्तानी, इसको लेकर आलरेडी इतना कंफ्यूज़न होने के वाबजूद हम कितना प्यार करते हैं न अपने देश से..और अपने भेष से भी !शायद उससे भी ज्यादा, जितना यहाँ के सिस्टम और नेताओं से नफ़रत । कभी-कभार मन करता हैं कि या तोह देश को अमरीका बना दे, या सबकुछ छोड़छाड़ गोवा चले जाये |
हमरे यहाँ की सबसे बड़का प्रॉब्लम क्या हैं, पता हैं आपको ? एक्चुअली आज भी हमारी एक बहुत बड़ी आबादी सुधारना नही चाहती, बात-बेवात प्रॉब्लम क्रिएट करना इनके डीएनए में हैं और एक बहुत छोटी आबादी इतनी सुधर कर हाथ से इसकदर निकल गयी हैं कि हमें तो क्या… अपने माँ-बाबूजी व परिवारवालों तक को अपना मानाने के लिए तैयार ही नहीं। बात बेबात मैनर और डिसिप्लिन के नाम पर शोषक बन चुकी हमारी सुधरी पीढ़ी अमेरिकन कल्चर की डाई-हार्ट फैन हैं | कुछ % महानुभावों की हरकतों को देखकर प्रतीत होता हैं, मानो जरूर इनके बाबूजी इंग्लैंड से होंगे और माताश्री न्यूयॉर्क-प्यूयॉर्क से हों..! जिन्होंने फेसबुक लाइव से शादी की, IMO में सुहागरात और भारतीय डाक के एक-एक रुपए के पांच-सात गोडसे-गांधी छाप टिकटो के परिणामस्वरूप बेचारे की भारतीय वांशिगटन में डिलीवरी होय गयी।
बाक़ी बचे हम सब तीसरे कैटोगरी के लोग, जो ऑनलाइन और ऑफलाइन वर्ल्ड में आईएएस आईपीएस छोड़ प्यार का कम्पटीशन लड़ रहे हैं। साल के अनेकों सप्ताह-महिना तो प्यार-शियार , टकरार और फिर इनकार में बिता कर फ़ैल का डिग्री माथे पर साट खाख छान रहे हैं | इतना फलूदा हो जाने के बाद बेशर्मी की हदें देखिये, जिस प्रकार केजरीवाल जी पराजय का ठीकरा EVM में फोड़ते हैं, उसी प्रकार हम आउट ऑफ़ सिलेबस, 27% से लेकर 50% आरक्षण इत्यादि की कहानियां बनाना स्टार्ट| हां बातों में बहल कर धोखा खा चुके हमरे मासूम जनता, हमार बाबूजी भरपूर कुटाई करने के किसी अवसर से नही चुकते..! जैसे मफलर वाले ढ़ोंगी के साथ राजधानी एक्सप्रेस के यात्रियों ने MCD में किया |
जिस देश के आजादी के 70 सालों के वावजूद चुनाव जाति, धर्म, ग़ुलाबी, हरी-गुलाबी नोटों के दम पर मुफ़्तख़ोरी के वादे पर लड़ा जाता हो, वहाँ परिवर्तन की आशा रखना बेमानी हैं साहब। 4 पत्नियां और 40 बच्चे मंजूर हैं, पर हमने तीन तलाक क्या कह दिए, बीजेपी और संघी हो गये। खाद्य सुरक्षा के नाम पर मंथली फकैती में नमक-चीनी से लेकर दाल-चावल-गेंहू का मजा लूटने वाली 25% आबादी गरीबी की लक्ष्मण रेखा को फंदे क्यों। काश हमारी सरकार तनिक और समझदारी दिखाकर पीने के कुछ व्यवस्था कर दे, कसम से हम भी गरीबो की पाठशाला में नाम लिखवा लेते। आई ऍम फीलिंग थैंक फुल टू सरकार फॉर बृद्ध पेन्सन एंड लूकिंग फॉर बुडापा वाला जुगाड़ , दादा नाना टाइप के खूसट टाइप के बुड्ढ़े पेंशन के नाम पर मिले 600 रु को मधुशाला में भलीभाँति उपयोग करते हैं, अरे 20 रू डेली बाबा, मैथ्स कमजोर हैं का। और ये बुजुर्ग प्राणी पीकर हमका के भैया-भैया कहते हैं… अब आप ही बताओ हम भी ६०० के हक़दार हैं कि नाही ?
सरकारी स्कूलों के नाम पर मेरा खून खोल उठता हैं। कोई अपना लेवल इस कदर गिरता हैं भला। सरकारी स्कूल में खिचड़ी खा खाकर हमारे बच्चे इस कदर पिछड़ गए, मत पुछो । साफ़ साफ़ कहूँ, बहुत से सरकारी स्कूलों में आज के डेट में कामचोरों की फौज निवास करती हैं। बच्चे पढना नही चाहते हैं और गुरूजी पढ़ाना नही। यदि डीप एनालिसिस किया जाय तोह भइया, सरकारवे का सब चाल हैं। जनगणना, मतदान, सर्वे, मीटिंग में अधिकांश दिन जाया करने के बाद वो क्या पढ़ायेगा। आदमी हैं, मशीन थोड़े। और सब पढ़ लिख लेंगे तो फिर उन्हें वोट कौन करेगा ?
आपके सोच से मै भी भली भांति सहमत हूँ साहेब कि घंटाघर हो चुके हमारे देश में समस्याये काफी हैं, पर इन समस्याओं के बीच संभावनाये भी कम नहीं। बस जरुरत हैं एक सकारात्मक सोच के साथ शुरुवात करने की। हजारों साल के इतिहास मे हमने अनेको उठा पटक को झेला हैं। कितने क्रूर राजाओं केअत्याचार और विदेशियों के शोषण के वावजूद आज भी हमारी संतति विश्व के विभिन्न मंचो पर झंडा गाड़ रही हैं। शायद हम भी इस देश का कुछ नही हो सकता वाली विचारों की तिलांजलि देकर आज लिखे जा रहे इतिहास के पन्नो पर अपना नाम कर सकते हैं।
अच्छे दिनों का सपना बेच सत्ता में आये अकेले मोदीजी या किसी नेता पर सिर्फ और सिर्फ दोषारोपण करके हम आप अपनी जिम्मेवारियों से मुंह नही मोड़ सकते।
उठो जागों कुछ काम करो,
कण-कण में देश प्रेम का भाव भरो |
© पवन बेलाला 2017
I can put this in my translate, hopefully today. One of the many languages. I am working on. Still I can feel the content. Thank you for the follow.
Caroline
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Thanks a ton dear for your kind words… 🙏
Thanks for joining my WP family..
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क्या बात पवन जी—- बहुत बढ़िया—एक साथ कई मुद्दों को सहजता से छू गए,
ना देश बुरा,ना हम बुरे,
ना बुरा मेरा संबिधान,
राजनीत के दलदल में,
पीस रहा अब भी इंसान।
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🙏🙏🙏🙇😇
बहुत बहुत धन्यवाद व आभार..
मेरी लेख को अपनी अद्धभुत पंक्तियों में समेटने के लिए साधुवाद…👌👍
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बहुत बढ़िया पवन जी —भावनाएं साथ हैं
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😍🙏🙇😇
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“India cannot do anything if” perfect think you do. I only feel pain for the revolutionary hierarchy”
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प्रेरित करने वाले विचार….प्रशंषनीय लेख….।।
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Bahut bahut Dhanyawad Sneha.Ji…
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Thank you so much sir
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Really well written. You have got the message across really well. Keep the good work up
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Thank you so much dear…🙏🙇
Your kind words source of encouragement for me..
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My pleasure
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🙏🙇😇😍
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Whatever you wrote it’s obviously true well written
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Thank you so much brother Rahul ji.. 🙏
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Welcome pawan ji🙏
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It’s my pleasure… 💐
Stay connected with your fantastic posts..
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Ok I am connected with your super fantastic posts
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And apne blog p bhi post karte rhe… Mujhe apki rachnayen kafi pasand h
. 👌👍
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Dhanyawad😊
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Sahi h
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Thanks a ton dear…🙏
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बहुत बढ़िया।
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धन्यवाद गौरव जी 🙏
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Wow, this thread should get me fluent in Hindi 😉
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Hi,
I wanted to comment on your post, but I don’t know Hindi and the translator didn’t come up. I’m sorry.
You liked a comment I made on The Diary of a Muslim Girl’s blog. I came over to thank you and introduce myself.
Janice
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Hello Janice,
I am Pawan from India.. Please accept my heartfelt gratitude for traveling my blog and introducing yourself. I express my apologies for difficulties you faced here… Google translate may help you…In this regard..
Thanks for joining my WP family..
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अच्छा लिखा है
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अनंत धन्यवाद जगदीप जी…🙏
हार्दिक स्वागत करते हैं हम आपका… हमारे WOrdpress परिवार में 💐💐💐💐
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Thnks जी
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It’s my pleasure dr….
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